Khamosh Chikhe|खामोश चीखे

तीन दोस्त थे गौतम करण और तन्मय

गौतम

गौतम बहुत गरीब था, उसकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। रोज की रोटी कमाना ही उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। उसके पीछे उसकी जवान बहन की शादी की जिम्मेदारी बीमार माता पिता की जिम्मेदारी थी।

तन्मय

तन्मय बहुत मतलबी था, उसे सिर्फ अपने फायदे की पड़ी रहती थी। दोस्ती भी उसके लिए सिर्फ एक सौदा थी।

करण

करण बहुत अमीर था, उसके पास दौलत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसके दिल में सच्ची भावनाएँ भी थीं।

तीनों की दोस्ती बचपन से थी, लेकिन उनके हालात और स्वभाव अलग-अलग थे।

(हादसा)

एक दिन करण के माता-पिता का कार एक्सीडेंट में निधन हो गया। यह हादसा इतना भयानक था कि करण के दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ा।

वह टूट चुका था, बिखर चुका था।

कुछ समय बाद, उसके व्यवहार में अजीब बदलाव आने लगे। वह घर में दो पत्थर रखता और उनसे बातें करता, मानो वे उसके माता-पिता हों। वह उन्हें खाना परोसता, उनके साथ हंसता-बोलता।

लोग उसे पागल समझने लगे, लेकिन उसके लिए ये पत्थर ही अब उसके माता-पिता थे।

पुराने दोस्तों की करन से मुलाकात

एक दिन गौतम और तन्मय करण से मिलने आए।

गौतम का दिल पिघल गया, उसे अपने दोस्त की हालत देखकर दुःख हुआ।🥺
गौतम देखता है कि करण की हालत बहुत खराब हो चुकी है। वह पूरी तरह से मानसिक संतुलन खो चुका था। दिन-रात बस उन पत्थरों के पास बैठा रहता, उनसे बातें करता, उनके लिए खाना लगाता।

गौतम को यह देखकर बहुत दुख होता है। वह अपने दोस्त को इस भ्रम से निकालना चाहता है।

गौतम-: करण, ये सिर्फ पत्थर हैं। ये तुम्हारे माता-पिता नहीं हैं। ये निर्जीव चीजें हैं, तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा नहीं।”


करण-:(घुसे में उसकी आंखें लाल हो जाती है) ओ चिल्लाता है. बदतमीज ऐसे बोलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई. अगर तू मेरा दोस्त ना होता तो मैं तुझे जान से मार देता. मेरे हाथों से कुछ गलत ना हो जाये चला जा मेरे नजरोसे दूर।


गौतम की आँखें नम हो गईं। वह कुछ नहीं कह सका। सिर झुकाए, दुखी मन से वह वहाँ से चला गया।


(गौतम को बुरा लगता है ओ चला जाता है. तभी मौके का फायदा उठाते हुए तन्मय अपनी चालाक बुद्धि का इस्तेमाल करता है)

तन्मय करण के पास आया और बोला, “यार करण, तुम्हारे मम्मी-पापा कितने अच्छे हैं! जब भी मैं यहाँ आता हूँ, वे मुझे कुछ पैसे दे दिया करते हैं। आज भी मुझे यकीन है कि मम्मी जी मुझे पैसे देंगी!”

करण यह सुनकर मुस्कुराया और बोला, “क्यों नहीं, मम्मी तुम्हें जरूर पैसे देंगी।”

उसने अंदर जाकर कुछ रुपये निकाले और तन्मय को दे दिए।

करन हमेशा पत्थरो से माँ बाप समझ कर बाते करता मानो की ओ उसके साथ हो. उनके लिए खाना बनाता और उनके साथ बैठ कर खाता
और तन्मय रोज कुछ ना कुछ बहाना बना कर करण के यहां आता और ओ भी पत्थरो से बाते करके करन से पैसे ऐंठ लिया करता

करण पूरी तरह से उन पत्थरों के साथ जीने लगा था। वह उनसे ऐसे बातें करता मानो वे सच में उसके माता-पिता हों।

हर दिन वह उनके लिए खाना बनाता, उनके साथ बैठकर खाता, और सोने से पहले उनके पास बैठकर घंटों बातें करता। उसकी दुनिया बस इन्हीं दो पत्थरों तक सीमित हो गई थी।

इसी बीच, तन्मय की लालच बढ़ती गई।

उसे पता था कि करण अपनी मानसिक हालत के कारण उसे आसानी से पैसे दे सकता है।

अब वह रोज़ करण के घर आता और बहाने बनाकर पैसे ऐंठता। कभी कहता, “मम्मी जी, मुझे नए जूते खरीदने हैं!” तो कभी कहता, “पापा, मेरी तबीयत खराब है, कुछ दवा के पैसे दे दीजिए!”

और करण, अपने तथाकथित “माता-पिता” की ओर देखकर मुस्कुराता, फिर जाकर पैसे निकाल लाता।

तन्मय हर बार पत्थरों के सामने हाथ जोड़कर कहता, “धन्यवाद मम्मी जी, धन्यवाद पापा जी!” और खुशी-खुशी पैसे लेकर चला जाता।

अब वह इस खेल को और आगे बढ़ाने की सोच रहा था।

(वहां गौतम अपने दोस्त की हालत को लेकर बहुत परेशान था। हर बार जब वह करण के बारे में सोचता, उसका दिल दुःख से भर जाता।)

उसे यकीन था कि अगर वह किसी तरह उन पत्थरों को करण से दूर कर दे, तो उसकी मानसिक स्थिति में सुधार आ सकता है।

आखिरकार, उसने एक फैसला किया—
“मुझे किसी भी तरह इन पत्थरों को करण से दूर करना होगा!”


गौतम ने तय किया कि वह एक सही मौके का इंतजार करेगा और जैसे ही उसे मौका मिलेगा, वह पत्थरों को चुपचाप उठा कर वहां से ले जाएगा।

गौतम का फैसला

एक दिन, गौतम करण के घर पहुँच गया।
करण ने जैसे ही उसे देखा, वह गुस्से में भर गया। उसकी आँखें लाल हो गईं।

“तू यहाँ क्यों आया है?” करण चिल्लाया।

गौतम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “अरे करण, तुम मुझसे गुस्सा हो सकते हो, पर मम्मी जी तो नहीं! मुझे तो उन्होंने ही बुलाया है!”

करण अचानक रुक गया। वह पत्थरों की ओर मुड़ा और घबराए हुए स्वर में बोला—

“मम्मी, तुमने इस बदतमीज को क्यों बुलाया?”

(गौतम ने देखा कि करण की हालत पहले से भी ज्यादा बिगड़ चुकी थी। अब वह बिना हिचक पत्थरों से बहस भी कर रहा था।)
करण ने गौतम को घूरते हुए देखा और गहरी आवाज में कहा, “मैं चाय लेकर आता हूँ, तब तक तू मम्मी से बात कर!”

गौतम ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “ठीक है, मैं मम्मी जी से बातें करता हूँ।”

जैसे ही करण चाय बनाने के लिए अंदर गया, गौतम का दिल तेजी से धड़कने लगा।
“यही सही मौका है!” उसने सोचा।

वह घबराते हुए आगे बढ़ा, एक पत्थर को धीरे से उठाया और उसे अपने साथ लाए थैले में डाल दिया।

तभी उतनी ही देर में करन फिर से गौतम के पास आता है

उसकी आँखें इधर-उधर भटकती हैं और वह घबराहट में पूछता है—
करण-:गौतम”मम्मी कहाँ हैं?”

गौतम का गला सूख गया। वह फौरन हड़बड़ाते हुए जवाब देता है, “वो… वो वाशरूम में गई हैं! इसीलिए मैं पापा जी से बात कर रहा हूँ!”

करण की आँखों में संदेह झलकता है।

करण तेजी से वाशरूम की ओर बढ़ा और अंदर झांकते हुए घबराहट में पुकारता है—
“मम्मी! आप कहाँ हो?”

लेकिन जैसे ही उसने वाशरूम का दरवाजा खोला, गौतम ने तुरंत उसे अंदर धकेल दिया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।

“गौतम! यह तू क्या कर रहा है? मुझे बाहर निकाल! मम्मी!! पापा!!”

करण अंदर से जोर-जोर से चिल्लाने लगा, दरवाजा पीटने लगा। लेकिन गौतम ने उसकी आवाज को अनसुना कर दिया।

जल्दी-जल्दी उसने दूसरा पत्थर भी उठाया और उसे अपने बैग में भर लिया।

पर जैसे ही उसने बैग उठाया, उसे एहसास हुआ कि बैग बहुत भारी हो चुका है।
अगर मैं दोनों पत्थर लेकर जाऊंगा, तो बैग फट सकता है।”

गौतम ने जल्दी से एक पत्थर बाहर जाकर फेंक दिया और फिर वापस आया ताकि दूसरा पत्थर भी फेंक सके।

लेकिन जब वह लौटा, तो देखा कि दूसरा पत्थर वहाँ नहीं था!

उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वह झुककर पत्थर को ढूँढने लगा।

और तभी…

करण पीछे से आया और पूरी ताकत से पत्थर गौतम के सिर पर दे मारा!

पत्थर का वार इतना तेज था कि रवि वहीं गिर पड़ा। कुछ ही पलों में उसका शरीर निष्प्राण हो गया।

इसी बीच, तन्मय करण के घर आ पहुँचा।

जब उसने यह सब देखा—गौतम का खून से लथपथ शरीर और करण के हाथ में पत्थर—वह घबरा गया।

वह कुछ कहने ही वाला था, लेकिन फिर बिना कोई शब्द कहे धीरे से पीछे मुड़ा और घर से बाहर निकल गया।

बाहर जाकर उसने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया।
पुलिस मौके पर पहुंची।

गौतम का खून से लथपथ शरीर ज़मीन पर पड़ा था, और करण के हाथ में वही पत्थर था जिससे उसने हमला किया था।

उसकी आँखों में एक अलग ही पागलपन झलक रहा था।

जैसे ही पुलिस ने उसे घेर लिया, वह पत्थर को जोर से पकड़ते हुए चिल्लाया—
“पापा ने इसे मारा है! इसने मम्मी को छुपा दिया था… इसीलिए!”

पुलिसवाले उसकी हालत देखकर एक-दूसरे को देखने लगे। यह साफ था कि करण मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुका था।

उन्होंने उसे पकड़कर हथकड़ी लगा दी।

जाने से पहले, करण ने तन्मय को पास बुलाया और धीरे से तिजोरी की चाबी उसके हाथ में थमा दी।

“गौतम ने मम्मी को कहीं छुपा दिया है… तुझे ढूंढना होगा।”

फिर उसने धीरे से फुसफुसाकर कहा—
“तिजोरी से पैसे निकाल लेना, और मम्मी को ढूंढकर घर वापस ले आना।”

तन्मय ने बिना कुछ कहे चाबी पकड़ ली। उसकी आँखों में एक अजीब चमक आ गई।

मानो तन्मय के हाथों में करन के पैसों की चाबी आ गयी हो.😎


((जब कोई व्यक्ति अपनी भावनाएँ किसी निर्जीव वस्तु से जोड़ लेता है और वास्तविकता से दूर हो जाता है, तो उसे समझाने की कोशिश करना कभी-कभी बेकार साबित हो सकता है।

तात्पर्य

अगर आप ज़रूरत से ज़्यादा समय और ऊर्जा किसी ऐसे व्यक्ति को सही रास्ते पर लाने में लगाते हैं, जो सच्चाई स्वीकार करने को तैयार ही नहीं है, तो अंत में नुकसान आपका ही हो सकता है।

इसलिए अपने करियर और लक्ष्य पर ध्यान दो—ना कि उन चीजों पर जो आपके बस में नहीं हैं।

वरना एक दिन आपकी हालत भी गौतम जैसी हो सकती है…))

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